Tuesday, March 22, 2011

उनकी किसी चीज़ को नहीं छेड़ता



वो अब
नहीं दुनिया में
फिर भी हैं पास मेरे
कमरे में जिस्म से नहीं
मगर अहसास से साथ मेरे
पर्दों से लेकर दीवारों में बसतीं 
बिस्तर की सलवटें,
तकिये पर कुछ बाल उनके
अब भी साथ मेरे
पहने अनपहने कपडे,
सौन्दर्य प्रसाधन
उन्हें मुझ से दूर ना होने देते
उनका चश्मा,पसंदीदा किताबें
अब भी उनकी चाहत दर्शाती
लगता कोई पसंद की पंक्ति
अब सुनाने वाली
चाबियों का झुमका,
बड़ा सा पर्स,सुन्दर चप्पलें
बाहर चलने का आमंत्रण देती
उनकी बातें कानों में गूंजती
हर चीज़ उनकी खुशबू से
महकती  
कभी प्यार जताना
कभी प्यार से झिडकना
कहाँ भूलता
कमरे में रहना मुझे अच्छा लगता
हर तरफ उन्हें पाता
जिस्म से तो दूर हुयीं
रूह से दूर ना जाएँ
निरंतर कामना करता
जो चीज़ जैसी रख कर गयीं
 वैसे ही रहने देता
डरता हूँ, छेड़ने पर नाराज़ हो
कमरे से ना चले जाएँ
इस लिए उनकी
किसी चीज़ को नहीं
छेड़ता
23-03-03
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
476—146-03-11

No comments: