आना ज़रूर चाहे
दर्द -ऐ-दिल बन कर
आना
घर अपना हमारे दिल में
बनाना
आग नफरत की अन्दर ही
जलाना
ना सोने देना, ना जागने देना
चाहे दिन रात हमें रुलाना
खुश फिर भी रहेंगे
कम से कम नज़दीक तो
रहोगे
निरंतर लौटने का
इंतज़ार तो ना कराओगे
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
454—124-03-11
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