Monday, March 28, 2011

प्रायश्चित



आज परीक्षा का
नतीजा आ गया ,
वो अब डाक्टर बन गया
घर पहुंचा,उम्मीद थी पिता
वादे के अनुसार,उसकी पसंद की
कार भेंट करेंगे
पिता ने गले से लगाया
रंग बिरंगे कागज़ का,लिफाफा दिया
उस में बंद किताब पढने को कहा
उस का चेहरा,क्रोध से लाल हो गया
बिना बात करे ,
सामान ले घर से निकल गया
दूर किसी शहर में बस गया
माँ बाप से रिश्ता तोड़ दिया
बरसों बाद उसे
अपने शहर जाने का मौक़ा मिला
अपना घर देखने का मन हुआ
वहाँ पहुंचा तो देखा,कोई और रह रहा था
परिचय देने पर,
उस शख्श ने बताया,
पिता ने मरने से पहले मकान
उसे बेच दिया ,
कभी उससे मुलाक़ात होने पर
ये लिफाफा देने का वचन लिया
उसने लिफाफा खोला
उसमें पिता की वसीयत थी ,
सारा पैसा उस के नाम किया था ,
सहनशील कैसे बनें ?
शीर्षक की किताब थी
साथ ही कार कम्पनी की रसीद थी
जिस पर बीस वर्ष पहले की तारीख थी
उसे याद आया ,
उस दिन डाक्टरी की परीक्षा का
नतीजा निकला था
उसकी आँखों से आंसूं बहने लगे
पिता ने वादा पूरा किया था
उसे सहनशीलता का महत्त्व
समझाना चाहते थे
इस लिए उन्होंने पहले उसे किताब
पढने को कहा
अपनी मूर्खता पर पछताने लगा
अब सब को सहनशीलता का
महत्त्व बताता
खुद से हुयी गलती कभी नहीं छुपाता
निरंतर प्रायश्चित करता रहता
28-03-03
530—200-03-11

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