Tuesday, March 22, 2011

क्यों सोचते,सब समझते हो तुम?



क्यों सोचते सब
समझते हो तुम
सब से
बुद्धिमान हो तुम
सब  से ज्यादा
आता तुम्हें
सारी अच्छाई
तुम में है
सब से श्रेष्ठ हो तुम
निरंतर मुखालते में
रहते हो तुम
सिर्फ अहम् से
भरे हो तुम
नाश अपना
कर रहे हो तुम
अपने अन्दर
कभी झांको तो सही
सवाल खुद से भी
कभी करो तो सही
उत्तर तुम्हें मिलेगा
ज़रूर
शर्म से सर झुकेगा
फिर ना कहोगे
कभी
तुमसे बेहतर
कोई नहीं
23-03-03
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
478—148-03-11

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