बाप दादाओं से विरासत में
मिली ज़मीन के छोटे से टुकड़े पर
खेती करता था
किसी तरह परिवार का
भरण पोषण करता
भरण पोषण करता
आज सरकारी कागज़ मिला
नयी सड़क बनेगी,
ज़मीन सरकार को देनी होगी
ज़मीन सरकार को देनी होगी
मुआवजे की राशी मिलेगी,
खेती बंद करनी पड़ेगी
खेती बंद करनी पड़ेगी
खेती बंद हुयी मुश्कलें बढ़ी
छोटा मोटा काम कर के भी
आवश्यकता पूरी नहीं होती
मुआवजे के लिए सरकारी दफ्तर के
चक्कर लगाते लगाते
चप्पलें घिस गयी कमर टूट गयी
गाँठ का पैसा भी बाबुओं को देते देते ,
चाय पानी पिलाते पिलाते ख़त्म हो गया
जी हजूरी करनी पड़ती सो अलग
पूरा दिन व्यर्थ हो जाता
जो चार पैसे कमाता,
उस से भी हाथ धोता
उस से भी हाथ धोता
एक पैसा मिलने से पहले ,
बीमारी ने जकड लिया
बीमारी ने जकड लिया
उम्मीद कम होती गयी,
निराशा ने घर कर लिया
निराशा ने घर कर लिया
कागजों में निरंतर
नयी कमी बता दी जाती
नयी कमी बता दी जाती
रोटी के लाले पड़ने लगे
छ बच्चों का परिवार
पालना असंभव हो गया
पालना असंभव हो गया
भीख मांगने की नौबत आ गयी
अवसाद में जीने लगा
एक दिन कुए में कूद जान दे दी
उसकी अर्थी निकल गयी
सरकारी दफ्तरों के
चक्कर से मुक्ती मिल गयी
चक्कर से मुक्ती मिल गयी
सरकारी फ़ाइल चलती रही
नयी सड़क बन गयी
जनता की सरकार जीत गयी
जनता हार गयी
27-03-03
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
519—189-03-11
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