"मैं" सिर्फ मैं,
इस ख्याल में
अकेला रह गया
दुनिया से कट गया
भ्रम दूर हो गया
खुद से भी
दूर हो गया
अकेला रहता हूँ निरंतर मातम
मनाता हूँ
साथ के लिए
तरसता हूँ
उम्मीद में जीता हूँ
किसी तरह
वक़्त काटता हूँ
26-03-03
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
518—188-03-11
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