काश
हर शख्श के जहन में
इक अक्स होता
क्या सोचता
दुनिया को दिखता
सारा झंझट ख़त्म
होता
न किसी का चेहरा,
दोहरा होता
ना कोई जुबान से
कुछ
दिल से कुछ और
कहता
निरंतर प्यार का
बोलबाला होता
नफरत का कोई स्थान
ना होता
23-03-03
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
474—144-03-11
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