तुम्हारी हर चिट्ठी
जला कर राख कर देता
हाथ किसी के कागज़ का
कीमती टुकडा ना
पड़ जाए,
कीमत उसकी कम
ना हो जाए
नज़र किसी की
तुम्हारे ख्यालों को ना
लग जाए
नया फ़साना पैदा ना
हो जाए
उसके हर लफ्ज को
ज़माने की नज़रों से
छुपा कर रखता
निरंतर
पास मेरे महफूज़ रहे
सुकून मुझको देता रहे
इस लिए जहन में
जज्ब रखता
दिल में छुपा कर
रखता
24-03-03
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर4
494—164-03-11
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