Tuesday, August 21, 2012

कैसे ख्यालों को ज़हन में आने से रोकूँ



तुम ही बताओ
कैसे  ख्यालों को
ज़हन में आने से रोकूँ
कैसे ख़्वाबों को खुद से
दूर रखूँ
इतना तंगदिल भी नहीं
मेहमान को आने ही ना दूं
ये बात जुदा है
मेहमान पसंद का मेरा
दिल से चाहता उसे
हकीकत में
बुलाने से भी नहीं आता
ख्यालों ख़्वाबों में
बिना बुलाये भी आ जाता
शायद मोहब्बत को
ज़माने से छुपाना चाहता
21-08-2012
679-39-08-12

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