Friday, August 3, 2012

मन का रिश्ता



घर से बाहर निकलते ही
एक लावारिस कुत्ता
मेरे पास आया
पूछ हिलाकर अभिवादन
करने लगा
मैंने भी उसे स्नेह से
पुचकार लिया
तीन वर्ष तक यही क्रम
निरंतर चलता रहा
समय एक साथ
हमारे बीच एक
अजीब सा रिश्ता हो गया
 वह घर के बाहर मेरा
 इंतज़ार करता
किसी दिन वह नहीं
दिखता
तो मन व्याकुल होने
 लगता
 उसकी प्रतीक्षा करता
ना उसे मुझ से
 ना ही मुझे उससे कोई 
आशा थी
हमारे मन का रिश्ता
दिन प्रतिदिन
प्रघाढ होता गया
सांयकाल दफ्तर से
घर लौटते  समय भी
मिलना आवश्यक हो गया 
अचानक
समय ने पलटा खाया
उसका दिखना बंद हो गया
कई दिन
व्याकुल व्यथित रहा
फिर भी उसे भूल ना पाया
पर एक प्रश्न ने
मन में जन्म अवश्य दे दिया
क्यों इंसान हर रिश्ते को
नाम देता
रिश्तों में मंतव्य ढूंढता
उन्हें शक से देखता
जब भी उस लावारिस
कुत्ते की याद आती है
आँखें नम हो जाती हैं
इंसानी रिश्तों की स्थिती
देख कर
मन में अजीब सी टीस
उठने लगती है
03-08-2012
642-02-08-12

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