Sunday, August 26, 2012

देश आज़ाद है



बाप खदान में
पत्थर तोड़ता
माँ भट्टे पर मिट्टी
उठाती
फटे कपड़ों में बच्चा
कचरे के ढेर से थैलियाँ
बीनता
सुख की बात ही कहाँ ?
परिवार बामुश्किल
जीवित रहने के लिए
कड़ी धूप में झुलसता
एक दिन निकलता
शरीर पहले से अधिक
काला और कमज़ोर पड़ता
फिर भी बाप
छोटी सी खोली में
जिसका महीने का किराया
पत्नी के महीने भर की
मेहनत को लील लेता
प्रसन्नता से भगवान् को
धन्यवाद देता
कल का दिन निकल जाए
पेट भर जाए
मन से प्रार्थना करता
रात भर खांसता रहता
मकान,गाडी,का सपना
देखने का भी समय नहीं
मिलता
अभी ज़ल्दी भी कहाँ है
पेट की अग्नि बुझाने की
पक्की व्यवस्था हो जाए
तो वो भी देख लेगा
बातों में निरंतर सुनता
देश आज़ाद है
जनता की सरकार है
पर उसे
कोई फर्क नहीं पड़ता
उसे आजादी से
पहले और आज में
कोई फर्क नहीं लगता
जो अपने माँ बाप को
करते देखता था
वो भी वही कर रहा
26-08-2012
696-56-08-12

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