Sunday, August 26, 2012

ज़न्नत सी ज़िन्दगी को दोजख बना रहे हैं



महबूब की यादों के
चिराग जल रहे हैं
वो अकेले में बैठे
आँखों से आंसू ढलका
रहे हैं
सीने में दर्द के सैलाब
उठ रहे हैं
चाँद से चेहरे के सामने से
गम के बादल गुज़र
रहे हैं
चेहरे के नूर को कम
कर रहे हैं
ज़न्नत सी ज़िन्दगी को
दोजख बना रहे हैं
26-08-2012
703-63-08-12

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