Monday, August 13, 2012

मंजिल



सोलह की उम्र थी
हवा में दुपट्टा
बेहिसाब उड़ रहा था
जुल्फें बेख़ौफ़ लहरा रही थी
आँखों में अजीब सी
कशिश थी
गीत गुनगुनाते हुए
मदमाती चाल से
बेफिक्र चली जा रही थी
नज़र पडी तो दिल में
बिजली सी कोंधी
एक झपट्टे में दिल
ले गयी
यूँ लगा हुस्न परी
आसमां से ज़मीं पर
उतर आयी
पता नहीं था
अब तक जिस दिल को
कहाँ मंजिल
कहाँ ठिकाना उसका
आज तलाश पूरी हुयी
पता चल गया
कहाँ मंजिल उसकी
13-08-2012
659-19-08-12

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