Sunday, September 23, 2012

टहलते टहलते



आज टहलते टहलते
एक पेड़ के नीचे बैठा
परिचित बूढा मिल गया
इस तरह अकेले चुपचाप
बैठे रहने का कारण पूछा
नम आँखों से कहने लगा
अब कोई चारा भी नहीं
ना कोई सुनता ,
ना समझता मुझको
कुछ कहने से पहले ही
चुप कर दिया जाता
निरंतर
प्रताड़ित होना पड़ता
मेरे लिए किसी के पास
समय नहीं
सब अपने काम में व्यस्त हैं
व्यथित हो
कहीं जाने का प्रयत्न करता
तो थोड़ी दूर चल कर ही
थक जाता
वैसे भी डूबते सूरज को
कौन नमस्कार करता है
अब बेबसी सहारा है
सुबह दो रोटी लेकर
घर से निकलता हूँ
पेड़ के नीचे दिन गुजारता हूँ
आने जाने वालों को देख कर
मन लगाता हूँ
कोई पास आ जाता तो
दो बात कर लेता हूँ
इसी तरह दिन गिनता
रहता हूँ
747-43-23-09-2012

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