Saturday, September 1, 2012

प्रतीक्षा में



अनमने भाव लिए
नदी किनारे कदम्ब के
पेड़ के नीचे बैठी
विचारों के जाल में उलझी थी
ऊपर गगन में काले बादलों की
गडगडाहट
उधर मन में विचारों का द्वन्द
उसकी व्यथा को बढ़ा रहे थे
नदी त्वरित गति से बह रही
पथ में आने वाली हर वस्तु को
अपने साथ बहा कर ले जा रही
नदी के पानी की भाँती
 विचार भी त्वरित गति से
आ जा रहे थे
मन में ढेरों आशंकाएं उसकी
आकांशाओं को निराशा में
बदल रही थी
प्रियतम से मिले महीनों
हो गए
बार बार के वादों के बाद भी
नहीं आये
हर बार नए बहाने का
सन्देश अवश्य आया
अब प्रतीक्षारत थी
 कब नदी के पानी की धारा
मंद पड़ेगी
आकाश से काले बादल
विदा होंगे
नीले गगन के दर्शन होंगे
सूरज फिर चमकने लगेगा
तब उसकी प्रतीक्षा की
घड़ियाँ भी समाप्त होंगी
उसके मन के आकाश में
आशाओं का सूरज चमकेगा
उसका प्रियतम से मिलन होगा
निराशा के काले बादलों से
छुटकारा मिलेगा
01-09-2012
706-02-09-12

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