Saturday, February 11, 2012

मन को संतुष्ट कर पाने का चैन

कभी सोचता था
संसार से जाने के बाद
सब मुझे याद करें
मेरे गुण गान करें
इसी प्रयास में
मन को जो अच्छा
नहीं लगता था
वह सब भी करता रहा
लोगों को
खुश करने के लिए
आत्मा को मारता रहा
इस चाहत में
घुट घुट कर जीता रहा
अब समझ आने लगा
किसी ने जीते जी नाम
नहीं दिया
जो भी किसी के लिए करा
उसे याद नहीं रखा
तो मेरे जाने के बाद
क्या याद रखेगा
फिर भी मेरा किया करा
सब व्यर्थ नहीं गया
उसने मुझे सिखा दिया ,
जब बेनाम ही जाना है
तो क्यों ना शब्दों को
अपनी पहचान बनाऊँ
वह सब लिखूं
जो इन आँखों से देखा
इस ह्रदय ने सहा
इस मन ने भुगता
कम से कम भूले भटके
जो भी
मेरा लिखा पढ़ लेगा
उसका अंश मात्र भी
जीवन में उतार लेगा तो
जीवन का सत्य जान लेगा
अपना कुछ भला कर लेगा
अपेक्षा रखना छोड़ देगा
जो मैंने सहा,भुगता ,
कम से कम उतना तो
नहीं भुगतेगा
इसी बहाने मुझे भी
याद कर लेगा
मैं भी वह कर पाऊंगा
जो मन को अच्छा लगता
मन को कुछ सीमा तक
संतुष्ट कर पाने का
चैन तो संसार से
लेकर जाऊंगा 
11-02-2012
151-62-02-12

No comments: