Tuesday, February 21, 2012

आज वो हमें मनाने आये हैं

आज वो
हमें मनाने आये हैं
अपनी बेवफाई की
वजह बताने आये हैं
ज़ख्मों पर
मरहम लगाने आये हैं
समझते हैं
हम उनकी बातों में
आ जायेंगे
अश्क पोंछ कर उनकी
बाहों में झूल जायेंगे
भूल गए 
पहले भी कई बार
वादे किये थे हमसे
हर बार रोता छोड़ गए
हमने भी
तय कर लिया अब
उन्ही के
तीर से उन्हें मारेंगे
हँस कर कह देंगे
थोड़ी सी देर से आये हैं
हम उनके रकीब को
हाँ कर चुके हैं
21-02-2012
212-123-02-12
रकीब = दुश्मन

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