Wednesday, February 29, 2012

अटूट विश्वास


बाल बिखरे हुए
दाढी बढी हुयी 

 पर आँखों में
आशा की चमक
कंधे पर 
भोजन पानी से भरा
झोला टंगा हुआ
सफ़ेद कुड़ते पायजामा 
पहने
तेज़ क़दमों से चलते हुए
जंगल के छोर पर लगे
अमलतास के पेड़ के
नीचे जा बैठता था
शाम तक
उसकी प्रतीक्षा करता
फिर अन्धेरा होने से पहले
बुझे मन से घर लौट आता
आख़िरी
बार वही मिली थी वो
जाते जाते अगले इतवार को
वहीं मिलने का
वादा किया था उसने
उसे अपने प्यार पर
अटूट विश्वास था
एक दिन वो ज़रूर आयेगी
इस आशा में
उसने विवाह नहीं किया
बरसों से हर इतवार को
तडके सवेरे जंगल की ओर
निकल पड़ता था   
29-02-2012
262-173-02-12

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