Thursday, February 16, 2012

क्यूं नहीं साफ़ साफ़ कहते ...

मेरे लबों पर
तुम्हारे लबों के निशाँ
अब भी ताज़ा हैं
मेरे गालों पर
तुम्हारी
ऊंगलियों के निशाँ
अब भी महसूस होते हैं
तुम्हारा हर अंदाज़
मेरे जहन में ज़ज्ब है
मेरे दिल में
अब भी तुम्हारा ही
बसेरा है
मेरी यादों का
दूसरा नाम तुम हो
और तुम कहते हो
तुम्हें भूल जाऊं
क्यूं नहीं
साफ़ साफ़ कहते
खुद को ही भूल जाऊं
अब इस
फरेबी दुनिया से
कोई वास्ता ही
ना रखूँ
16-02-2012
177-88-02-12

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