Friday, February 24, 2012

बेचारी अटेची

मुझे यात्रा में
काम आने वाली अटेची
पर बहुत दया आती
अमीर गरीब
हर घर में मिलती 
देश विदेश
सब जगह साथ निभाती
यात्रा पर जाना होता
तो सबसे प्रिय बन जाती
झाड पोंछ कर साफ़
करी जाती 
पसंद के सामान से
सजायी जाती
ट्रेन हो या हवाई जहाज
सदा वो ही मस्तिष्क में रहती
ओझल ना हो जाए
दृष्टी बार बार उसी पर जाती
यात्रा पूरी ना हो जाए जब तक
ह्रदय में निवास करती
एक बार लौट कर आ जाओ
तो सौतेले व्यवहार का
शिकार होती
मूक रह कर सहती रहती
सामान निकाल कर
पलंग के नीचे
अलमारी के ऊपर
या भुखारी में छुपा दी जाती
यात्रा में लगाए नाम की
चिप्पियाँ तक
उतारी नहीं जाती 
महीनों धूल खाती रहती
किसे ऐसे रिश्तेदार जैसे होती
जिसे विवाह के अवसर पर
शान बढाने के लिए
बुलाया जाता
विवाह संपन्न होते ही
भुला दिया जाता 
24-02-2012
237-148-02-12

No comments: