Saturday, February 11, 2012

ना कोई समझा ना ही जाना हमें

ना कोई समझा
ना ही जाना हमें
हँसने की चाह ने
इतना रुलाया हमें
जीना ही भूल गए
हमदर्दी की आस में
दर्द गले लगाते रहे
ना बची अब कोई चाह
ना किसी से कोई आस
हर शख्श से
खौफ खाते हैं हम
फिर ज़ख्म खाने से
डरते हैं हम
अब सोच लिया हमने
खामोशी से सहते रहेंगे
कहेंगे नहीं अपने दर्द
अब किसी से
चले जायेंगे दुनिया से
इक दिन यूँ ही
रोते रोते
11-02-2012
148-59-02-12

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