Sunday, February 19, 2012

दौड़ेगा मन उधर ही जहां चैन मिलेगा

दौड़ेगा मन उधर ही
जहां चैन मिलेगा
भागेगा ह्रदय उधर ही
जहां प्यार मिलेगा
याद उसी की आयेगी
जो हँस कर बोलेगा
चाहेगा उसी को जो

सुनेगा मन की व्यथा को
सुलझाएगा समस्या को
उत्तर देगा प्रश्नों का
सहलाएगा पीठ को
फिर बढ़ाएगा होंसला
सजाएगा चेहरे को
प्यारी सी मुस्कान से
दौड़ेगा मन उधर ही
जो निभाएगा फ़र्ज़
एक दोस्त का
19-02-2012
197-108-02-12

2 comments:

***Punam*** said...

ishwar aapki iksha poori kare....
Ameen...!

महेन्‍द्र वर्मा said...

मन मनमानी तो नहीं कर सकता लेकिन जहां उसे चैन मिलेगा, वहीं जाएगा...बार-बार !
सुंदर कविता।