तेरी यादों
में डूबा हुआ
समंदर किनारे
बैठा हूँ
आती जाती लहरों
को
देख रहा हूँ
कैसे मंजिल
को छू कर
समंदर से मिलने
से पहले
लहरें
अपना निशाँ
छोड़ जाती हैं
क्यूं तुम ऐसा
नहीं करती ?
माना की मंजिल
बदल चुकी तुम्हारी
फिर भी
इतना तो याद
होगा तुम्हें
कभी मैं ही
था मांझी
किश्ती का तुम्हारी
मेरे रकीब से
मिलने से पहले
मुझसे मिल कर
लौट जाना
तुम्हारे छोड़े
हुए निशानों
के सहारे ही
उम्र गुजार दूंगा
13-08-2012
657-17-08-12
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