रोज़ दिखते
हैं नए नए चेहरे
दिखते नए नए
नए मंज़र भी
मिलता हूँ नए
नए लोगों से
देखता हूँ नए
नए नज़ारे भी
दिखते तो साए
भी हैं रोज़ हमें
कभी निभाते
नहीं साथ वो भी
इतनी भीड़ में
भी अकेला हूँ
तनहा हूँ भी
तनहा नहीं भी
21-08-2012
671-31-08-12
No comments:
Post a Comment