अब बहारों को
भी
खामोश निगाहों
से
देखते हैं हम
खुश होकर भी
ज़ाहिर नहीं
करते हैं
खौफज़दा हैं
फिर ना लग जाए
हमारी ही
नज़र हम को ही
किसी और पर
क्यूं
इलज़ाम लगाएँ
जब हम ही बर्दाश्त
नहीं कर पाते
खुशी
खुद की
03-08-2012
644-04-08-12
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