यूँ ही सागर
किनारे
टहलते टहलते
,
मिली इक बोतल
अनायास
छुपा रखा था
अपने दामन में
उसने
इज़हार-ऐ-मोहब्बत
के
लब्जों से
भरा एक ख़त
ज़हन में ख्याल
आया
कितनी
ज़ज्बाती थी बोतल
खुद मय की बेवफाई
भुगत रही थी
जो किसी और
के हलक में
उतर चुकी थी
गम में डूबी
थी
बोतल खुद
समंदर के पानी
में
डूबकियां लगाती
रही
मगर दूसरों के प्यार को
सीने से लगाती
रही
कितनी
ज़ज्बाती थी
बोतल
खुद लुट गयी
दूजे को लुटते
नहीं देखना
चाहती थी
03-08-2012
643-03-08-12
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