कोई पंछी ना उड़ता
सितारा ना जगमगाता
चाँद बादलों के पीछे
छुपा रहता
सूरज कभी ना उगता
तो आकाश को कौन
पूछता
विशाल और विस्तृत
होते हुए भी गौण होता
उस मैदान सा जिसमें
ना घास ना वृक्ष
उस सूने राजमहल सा
जिसमें कोई नहीं रहता
सन्नाटा जहां काटने को
दौड़ता
विशाल के साथ सूक्ष्म
भी आवश्यक होता
बिना भावनाओं के
जीवन होते हुए भी
व्यर्थ होता
सूने आकाश से कम
नहीं लगता
15-05-2012
527-47-05-12
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