Tuesday, May 15, 2012

आज कलम कुछ रुकी रुकी सी है

कुछ रुकी रुकी सी है
भावनाएं भी ठहरी हुयी हैं
रुकावटें मुंह बायें खडी हैं
चिंताएं बढ़ी हुयी हैं
कुछ लिखूं
या चिंताएं दूर करूँ
झंझावत में फंसी हुयी है
इधर कुआ उधर खाई है
लिखूं नहीं तो मन
तडपेगा
लिखूं तो समय
लिखने में लगेगा
जब तक चिंताओं को
झेलना होगा
अब फैसला कर लिया
लिख कर तनाव दूर
करूंगा
चिंताओं का बोझ
हल्का करूंगा
फिर ठन्डे दिमाग से
सोचूंगा
चिंता मुक्त होने का
मार्ग निकालूँगा
14-05-2012
523-43-05-12

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