जिसे भी मनायें हम मनायें
हमारे दुःख ना जाना कोई
किसे कहें तकलीफ हमारी
हमें सुनने वाला नहीं कोई
हमें तो आदत है सहने की
क्यों हमें दिलासा दे कोई
ना पहले दुआ का असर हुआ
ना अब आगे उम्मीद कोई
अब मुस्काराते हुए जीना है
अब और चारा भी नहीं कोई
30-05-2012
544-64-05-12
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