सदियों से उठ रही हैं
गरीब के दिल से
सिसकियाँ
पीढी दर पीढी
रुकी नहीं ये सिसकियाँ
दो जून रोटी के खातिर
चलती रहती हैं
सिसकियाँ
बचपन से बुढापे तक
बंद नहीं होती
सिसकियाँ
ज़िन्दगी का दूसरा नाम
हो गया सिसकियाँ
तारीख बदली
वक़्त बदला
रुकी नहीं ये सिसकियाँ
राजाओं ने देखा,
नवाबों ने देखा
करा कुछ भी नहीं
बंद करने के लिए
सिसकियाँ
13-05-2012
518-32-05-12
518-32-05-12
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