Sunday, May 6, 2012

हास्य कविता- आशिक था बेचारा इश्क का मारा


आशिक था बेचारा
इश्क का मारा
समझता था खुद को
शाहरुख का साला
चेहरा था मासूम
हाथ अगरबत्ती
पैर मोमबत्ती
वज़न बीस किलो
पकड़ कर नहीं रखो तो
तेज़ हवा में उड़ जाए
कोई ऊंगली लगा दे
तो ज़ख़्मी हो जाए
गुस्सा इतना
कि आग भी शरमाए
जुबान गालियों से भरी
एक कन्या नज़र आयी
तो सीटी बजायी
फिर घूर कर देखने लगा
आशिकी
अंदाज़ में फिकरा कसा
चलती क्या खंडाला
कन्या ने पहले पुचकारा
फिर फुफकार कर बोली
पहले हाथ पैर सम्हाल
फिर हो जा नौ दो ग्यारह
नहीं तो बजाऊँगी बारह
आशिक था अकडा हुआ
अमचूर
जवाब में गाली बक दी
कन्या ने भी गाल पर
थप्पड़ जड़ दिया
आशिक बेचारा
चार फुट दूर उछल गया
बुक्का फाड़ कर रोने लगा
सारी हेकड़ी निकल गयी
कहने लगा बहना
मज़ाक कर रहा था
कन्या बोली
मैं नहीं कर रही थी
जब भी
मज़ाक का मन करे
मुझे बता देना
किसी कन्या को
छेड़ने से पहले
थोड़ी सेहत बना ले
रोज़ एक बादाम खा ले
आधा पाँव दूध पीले 
अब जा कर आराम कर ले
माँ की गोद में सो ले
06-05-2012
503-18-05-12


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