हँसते हुए
चेहरे पर आज ये उदासी कैसी
महकाती थी
ज़माने को खुशबू जिनकी
आज उन बहारों
में ये खिजा की बू कैसी
दिल डूबता है
देख कर ये खौफ का मंज़र
शहनाइयों के
बीच ये मातमी धुन कैसी
नहीं आ रहा
समझ मुस्कुराते लबों पर
आज खुले आम
ग़मों की नुमाइश कैसी
ना दे खुदा
किसी हसीं को किस्मत ऐसी
मंदिर में हो
जाए कब्रिस्तान की खामोशी
मासूम पर खुदा
की ये मेहरबानियाँ कैसी
ना मिले किसी
दुश्मन को भी सज़ा ऐसी
10-05-2012
510-25-05-12
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