अनंत काल से
कालजयी
मुस्कान लिए
मरुधर में
निश्चल खडा हूँ
धूल भरी
आँधियों से
अकेला लड़ रहा
हूँ
लड़ते हुए भी
हरीतिमा का
आभास दे रहा
हूँ
सदियों से
मुझे भस्म
करने का
प्रयत्न कर
रही
आग उगलते सूरज
की
तपन को सह रहा
हूँ
पथ से डिगाने
की
हर कोशिश को
नाकाम करता
रहा हूँ
स्वयं पर अडिग
विश्वास
मुझे काल
कवलित
होने से बचाता
रहा
मेरी मुस्कान
को
क्रंदन में
बदल नहीं पाया
15-05-2012
527-47-05-12
527-47-05-12
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