तूँ बड़ा ही अजीब है
तेरा कोई सानी भी नहीं
खामोशी से जहां टांगो
वहां टंग जाता
न कभी कुछ कहता
ना नाज़ नखरे दिखाता
मैं हाथ हिलाऊँ
मुंह बिचकाऊँ
बाल बनाऊ या ढाढी
तूँ भी वैसे ही करता है
जैसा मैं दिखता हूँ
वैसा ही दिखाता है
मन करता है
कभी तुझ से ही पूछ लूं
तूँ ऐसा क्यों करता है
पर जानता हूँ
आज तक किसी को
कुछ नहीं बताया तो
मुझे क्यों बताएगा
मन मसोस कर
रह जाता हूँ
पता नहीं लोग
क्यों तुझे आइना कहते हैं
मुझे तो तूँ लगता है
अव्वल दर्जे का नकलची
20-20-011-01-2013
आइना ,नकलची
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
No comments:
Post a Comment