बसा कर
प्रियतम को
ह्रदय में
खोल दिए
प्रतीक्षा के
द्वार मन में
पल पल
दिन महीनों
और साल
बांधती रही
आशाओं के बाँध
निद्रा खोयी
चैन खोया
मिला नहीं फिर
भी
प्रियतम का
साथ
आँखों से अश्रूओं
की धारा
अविरल बहती
रही
मन रहा सदा
उदास
चेहरे की
चमक विदा हो
गयी
मन की आस पूरी
ना हुयी
जीवन मरण हुआ
सामान
निराशा ने जकड
लिया
जीवन बन गया
शमशान
04-05-02-01-2013
प्रेम,प्रियतम ,मोहब्बत,प्यार ,विरह
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
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