आंकड़ों के
मकड़ जाल में
सारा देश
उलझ गया
गरीब बेचारा
गरीब रह गया
मुद्रास्फीति,महंगाई
दर ,
रोज़ कितने
पैसों में
गरीब का घर
चलता
इस जोड़ बाकी
में
गरीब बेचारा
पिस गया
वातानुकूलित
कमरों में बैठे
अर्थशास्त्रियों
की ज़द्दोज़हद में
गरीब बेचारा
उलझ गया
उसे क्या लेना
देना
क्या बड़ा क्या
घटा
अंतर्राष्ट्रीय
बाज़ार में
थक चुका आंकड़ों
के जाल से
उसके तो पेट
की भूख
मिटनी चाहिए
पीने को स्वच्छ
पानी
सर पर छत होनी
चाहिए
बच्चों को शिक्षा,स्वस्थ
शरीर
क़ानून का राज़
चाहिए
दर बड़े या
घटे
नेता झूठ बोले
या सच
उसे कोई मतलब
नहीं
उसे तो बस आराम
की
नींद आनी चाहिए
07-07-03-01-2013
देश,सरकार,राज,गरीब,जनता
डा.राजेंद्र
तेला,निरंतर
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