वही खिड़की
वही सड़क
वही चलते दौड़ते लोग
मगर अब
आँखों को चैन
हवा में महक नहीं
चिड़िया तक
चहकती नहीं
कितना भी ढूंढूं
नज़रें गडाए बैठूं
मगर अब वो
नज़र नहीं आती
54-54-28-01-2013
इंतज़ार,प्यार,मोहब्बत
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
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