ये साज़िश भी कैसी बला है
कभी मन ह्रदय से करता
कभी ह्रदय मन से करता
कभी दोस्त
दोस्त को नहीं छोड़ता
कभी अपना पराये से
कभी पराया अपने से
कभी संतान माँ बाप से
माँ बाप संतान से
पत्नी पति से,पति पत्नी से
बात मनवाने के लिए
साज़िश करता
कभी मौसम भी साज़िश
करने से बाज़ नहीं आता
गर्मी में सर्दी तो सर्दी में गर्मी
का अहसास देता
काला बादल बिन बरसे
गुम हो जाता
जिसने भी बनायी साज़िश
उससे प्रार्थना करता हूँ
जितना भी बचा सके
बचा ले मुझको साजिशों से
46-46-25-01-2013
साज़िश
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
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