जीवन के
दुर्गम पथ पर
चलता रहा
ठोकर खा कर
गिरता रहा
उठ कर फिर
चलता रहा
सदा हँसता रहा
तुम थोड़ा सा
चल कर थक गए
ठोकर खा कर बैठ गए
बिना दुःख के रोते रहे
तुमने समझा
जीवन एक नर्म
बिछोना है
मैंने समझा
जीवन लक्ष्य है
निरंतर चलते रहना
कर्तव्य है
दुर्गम पथ पर
चलता रहा
ठोकर खा कर
गिरता रहा
उठ कर फिर
चलता रहा
सदा हँसता रहा
तुम थोड़ा सा
चल कर थक गए
ठोकर खा कर बैठ गए
बिना दुःख के रोते रहे
तुमने समझा
जीवन एक नर्म
बिछोना है
मैंने समझा
जीवन लक्ष्य है
निरंतर चलते रहना
कर्तव्य है
39-39-21-01-2013
जीवन,लक्ष्य, कर्तव्य
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
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