ज़माने की हवा
कुछ ऐसी चली
धूप भी डर कर
छाया में रहने लगी
कोई दिन दहाड़े उसका
उजाला ही नहीं लूट ले
उसकी इज्ज़त से
नहीं खेल ले
घबरा कर
मुंह छिपाने लगी
कहीं और जा कर खिलूँ
परमात्मा से
प्रार्थना करने लगी
34-34-17-01-2013
इज्ज़त, इज्ज़त लूटना,बलात्कार,धूप,उजाला
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
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