Saturday, May 12, 2012

लक्ष्य की और


कोई हाथ पकड़ता है
कोई पैर खींचता है
कोई बातों से विचलित
करने की कोशिश
तो कोई अवरोध खड़े
करता हैं
चारों तरफ से
मुझे पथ से डिगाने
का प्रयास होता रहा है
कभी विचलित भी होता हूँ
आपा खो देता हूँ
कभी लडखडाता हूँ
इश्वर में आस्था
अपने आप पर विश्वास
मुझे पथ से
डिगने नहीं देता
अवरोधों को पार करते हुए
लोगों के मंसूबे
पूरे नहीं होने देता
ना हार मानता हूँ
ना थकता हूँ
निराशा के चक्र व्यूह से
अपने को बचाते हुए
अविरल नदी सा बहता 
रहता हूँ
लक्ष्य की और
अग्रसर रहता हूँ
10-05-2012
511-26-05-12

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