Sunday, May 6, 2012

कुंठा की अभिव्यक्ती


तुम कहते हो खामोश रहूँ 
आंसू ना बहाऊँ
भावनाओं को खुले आम ना
दर्शाऊँ
तो,क्या ग़मों को पीता रहूँ
उनका बोझ ढ़ोता रहूँ
मन हे मन घुटता रहूँ
उनके बोझ तले दब जाऊँ
उन्हें अपने भीतर इतना भर लूं
कभी उठना चाहूँ तो
उठ ही ना सकूँ
मुझे पता है तुम कहोगे
ऐसी निराशा भरी बातें
मत करो
पर ऐसा भी नहीं है
मन की कुंठाओं को
अगर बाहर नहीं निकालूँगा
तो निश्चित रूप से
निराश हो जाऊंगा
अन्धकार में चले जाऊंगा
उजाले में रह कर ,
उजाले को मुखर बनाना है
तो  कुंठा मुक्त होना होगा
कुंठा की अभिव्यक्ति
क्या कुंठा दूर करने का
उपाय नहीं है ?
यह प्रश्न उठा कर ही तुमने
मेरे अन्दर एक नयी कुंठा को
जन्म दिया
पल पोस कर वह
विकराल रूप ले ले
उससे पहले ही उसे जड़ से
काटना आवश्यक है
उसकी अभिव्यक्ती
तत्काल करना भी
आवश्यक  है 
06-05-2012

500-15-05-12

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