Sunday, May 6, 2012

धूप छाँव


कई दिन बाद
वो हँस कर बोले
उनकी हँसी
कितनी देर रहेगी
कब मुंह लटका कर
बैठ जायेंगे
आंसू बहाने लगेंगे 
इस डर से उनके साथ
हँस नहीं सका
उनका धूप छाँव सा
हँसना रुलाना
अब सह नहीं पाता
हँसना चाहूँ उससे
पहले ही रोना पड़ता
पर उनका मोह मुझे
उनसे दूर भी नहीं होने देता
गलती उनकी नहीं है ,
इसलिए सह रहा हूँ
लोगों ने
 इतना रुलाया उनको
कि हँसना ही भूल गए थे
रोना,रुलाना,
जीने का तरीका बन गया
बहुत समझाने के बाद
कभी कभी हँसने तो लगे हैं
जिस दिन निराशा से
मुक्त हो जायेंगे
हँसना उनके जीवन का
तरीका बन जाएगा 
मैं भी मन से
उस दिन ही हँस 
पाऊंगा
05-05-2012
498-13-05-12

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