कैसी विडंबना
है
कभी कोई बुलाने
पर भी
नहीं आता
कभी बिना बुलाये
भी
घर लोगों से
भर जाता है
जब मन की संतुष्टी
के लिए
एक साथ ही बहुत
होता
वो भीड़ में
भी नहीं मिलता
इंसान
खुद को अकेला
समझता
निरंतर
मन के अनुरूप
साथ की
तलाश में भटकता
रहता
सदा असंतुष्ट
रहता
13-09-2012
730-26-09-12
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