ना कहीं खोता
हूँ
ना कहीं छुपता
हूँ
कभी अपने
ग़मों के बोझ
तले
सब कुछ भूल
जाता हूँ
कभी दूसरों
को
पागल कहता हूँ
कभी खुद पागलपन
करता हूँ
परेशानियों
से
घबरा जाता हूँ
भावनाओं पर
नियंत्रण खोता
हूँ
मैं भी इंसान
हूँ
भूल जाता हूँ
होश आने पर
शर्मिन्दा होता
हूँ
माफ़ी माँगता
हूँ
अनुभव से
सीख लेने का
पथ से नहीं
भटकने का
निश्चय करता
हूँ
745-41-23-09-2012
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