फूल तो अब भी
बहुत खिलते हैं
मेरे बगीचे में
पर क्या करूँ
अब कोई नहीं जिसे
बहुत खिलते हैं
मेरे बगीचे में
पर क्या करूँ
अब कोई नहीं जिसे
भेज सकूं
अब मुन्तजिर हूँ
एक खुशनुमा चेहरे का
जिसे मेरे बगीचे के
फूलों की
महक सुंघा सकूं
तब तक
फूलों को यूँ ही खिलते
मुरझाते देखना होगा
इंतज़ार में
वक़्त गुजारना होगा
अब मुन्तजिर हूँ
एक खुशनुमा चेहरे का
जिसे मेरे बगीचे के
फूलों की
महक सुंघा सकूं
तब तक
फूलों को यूँ ही खिलते
मुरझाते देखना होगा
इंतज़ार में
वक़्त गुजारना होगा
750-46-23-09-2012
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