ज़िन्दगी के
हंसी
लम्हों की रोशनी
से भरे
छोटे छोटे घरोंदे
मेरे यादों में बसे हैं
ग़मों के बड़े
बड़े मकान
मेरे दिल और
ज़हन में
डेरा डाले हैं
जो मुझे सुकून
से नहीं रहने देते
बार बार हैरान
करते हैं
जब भी हैरानी
सही नहीं जाती
मैं कमरे की
खिड़की से
हरे भरे बगीचे
को देखता हूँ
फूलों को निहारता
हूँ
ज़िन्दगी के
हसीं लम्हों को
याद करता हूँ
यादों में बसे
रोशनी के घरोंदों से
रोशनी की किरणें
मेरे मन को
रोशन करने लगती
मेरे बेचैनी
कम होने लगती
हैरानी गुम
हो जाती
मैं खुद को
तरोताजा महसूस
करने लगता हूँ
फिर खुशी से
काम में
लग जाता हूँ
739-35-19-09-2012
No comments:
Post a Comment