Saturday, September 1, 2012

अब फिर ज़ख्म खाने का मन करता



अब फिर ज़ख्म खाने का
मन करता
उनसे मिलने का दिल
करता
मिलेंगे तो हम पर तोहमत
लगायेंगे
हमें गुनाहगार करार देंगे
शहर भर में रुसवा करेंगे
हमें तो
आदत है ज़ख्म खाने की
चुपचाप दर्द सहने की
हमें गम नहीं होगा उनके
नफरत भरे अंदाज़ का
इस बहाने उन्हें देख तो लेंगे
कुछ अरसे
उनके ज़हन में तो रहेंगे
01-09-2012
707-03-09-12

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