फूल
मुरझा चुका
था
पंखुड़ियां
बिखर चुकी थी
महक हवा में
मिल
चुकी थी
कभी होता था
हार
गले का
अब धरती चूम
रहा था
निरंतर पैरों
तले रौंदा
जा रहा था
नावाकिफ था
इंसान की
फितरत से
अपनों तक को
नहीं
बख्शता
फिर उस को कैसे
बख्शता
07-09-2012
729-25-09-12
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