Monday, September 3, 2012

ह्रदय के द्वार पर




मेरी जिम्मेदारियां
मजबूरियां,
मुझे कर्तव्य पथ से
भटकने नहीं देती
मेरी भावनाओं को
नियंत्रण में रखती
ह्रदय के द्वार पर खड़े
चाहने वालों के लिए
चाहते हुए भी
द्वार नहीं खोलने देती
द्वार के बाहर खड़े
चाहने वालों की पुकार
निरंतर
कानों में गूंजती रहती
दौड़ कर बार बार
द्वार तक पहुंचता हूँ
पर कर्तव्य का ध्यान आते ही
कदम पीछे लौटा देता हूँ
जानता हूँ
जीवन में कभी किसी को
वह सब नहीं मिलता
जो उसने चाहा
इच्छाएं,आकांशाएं
सर उठाती रहती
ज्वार भाटे सी आती जाती
उनपर नियंत्रण
व् सही दिशा देना भी
उतना ही आवश्यक है
संयम से काम लेता हूँ
मन को समझाता हूँ
खुशी से तय करता हूँ
ह्रदय का द्वार बंद ही रखूँ
कहीं ऐसा ना हो
जो ह्रदय के कुनबे में बसे हैं
मेरे अपने हैं
अपने आप को पराया
समझने लगे
उनके प्रति
असीम प्यार और मोह
मेरे क़दमों का संतुलन
बनाए रखते हैं
मुझे लडखडाने नहीं देते
यह पता होते भी
मेरे चाहने वालों के
ह्रदय को ठेस पहुंचेगी
पर अगर वे ह्रदय से
मुझे चाहते हैं
तो मेरी जिम्मेदारियों
मजबूरियों और कर्तव्य को
समझ कर मुझे क्षमा करेंगे
मूक रह कर मुझे पहले से
अधिक चाहते रहेंगे
मुझे पथ से नहीं भटकने देंगे
मैं उनके मन में
वो मेरे मन में बसे रहेंगे
03-09-2012
722-18-09-12


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